• बेलगांव गांधी और कांग्रेस

    कर्नाटक का बेलगांव नगर वैसे तो हाल के दशकों में महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच जोर-आजमाइश का केंद्र बना हुआ है, लेकिन यहां देश की कुछ ऐसी अहम घटनाएं घटी हैं, जिसने राजनीतिक और सामाजिक धारा को बदलने का काम किया।

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    — अरविंद कुमार सिंह
    कर्नाटक का बेलगांव नगर वैसे तो हाल के दशकों में महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच जोर-आजमाइश का केंद्र बना हुआ है, लेकिन यहां देश की कुछ ऐसी अहम घटनाएं घटी हैं, जिसने राजनीतिक और सामाजिक धारा को बदलने का काम किया। इनमें सबसे प्रमुख घटना थी 26 दिसंबर 1924 को महात्मा गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना। बेलगांव का 39वां कांग्रेस अधिवेशन आजादी के आंदोलन के इतिहास में ही नहीं भारत के राजनीतिक इतिहास में मील का पत्थर बना था।


    हालांकि गांधीजी केवल एक साल ही कांग्रेस अध्यक्ष रहे लेकिन 1920 के बाद से अपने निधन तक कांग्रेस के सबसे प्रमुख नीति निर्धारक बने रहे। कांग्रेस अध्यक्ष के अपने सीमित काल खंड में भी उन्होंने इतनी लंबी लकीर खींची थी कि वहां तक पहुंच पाना किसी भी दल के अध्यक्ष के लिए अब तक संभव नहीं रहा। एक साल पूरा होते ही उन्होंने अपना उत्तराधिकार कानपुर में सरोजिनी नायडु को सौंप दिया जो कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। गांधीजी से पहले काकीनाडा अधिवेशन की अध्यक्षता मौलाना मोहम्मद अली ने की थी।


    जब गांधीजी कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तो बेलगांव 36 हजार की आबादी का कस्बा था, आज बड़ा नगर है, जहां विधान सभा तक है। इसका नाम भी अब बेलगावी है। यहां 26 और 27 दिसंबर को देश भर के प्रमुख कांग्रेस नेता जुट रहे हैं। कर्नाटक की राजधानी बंगलूर से 500 किमी दूर बेलगांव गोवा का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।
    कर्नाटक की धरती पर बेलगांव का अधिवेशन पहला था, जिसके लिए तैयारियां मार्च 1924 से ही आरंभ हो गयी थीं। सितंबर 1924 में 16 उप समितियां बनी। 80 एकड़ भूमि को ठीक करके अधिवेशन हुआ था। प्रतिनिधियों का आगमन 18 दिसंबर, 1924 से शुरु हो गया था। खुद गांधीजी 20 दिसंबर, 1924 को पहुंच गए थे और 1924 के अंत तक रहे।


    बेलगांव में गांधीजी ने कांग्रेस के आभिजात्य रूप-रंग को बदल कर संविधान को नया रूप दिया। गांव, गरीब औऱ किसानों और मजदूरों के लिए कांग्रेस के दरवाजे खोले। कांग्रेस संगठन को रचनात्मक कामों से जोड़ा। छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ मुहिम को कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे में शामिल किया। अंग्रेजी की तुलना में हिंदी और भारतीय भाषाओं को इसी अधिवेशन से अधिक तवज्जो मिली। खुद गांधीजी ने यहां भाषण हिंदी में दिया था। सम्मेलन में कई भाषण हिंदी, अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ में हुए। हिंदी में भाषण देते हुए गांधीजी ने कहा था कि '..मैं जब से हिंदुस्तान आया हूं, तब से कहे जा रहा हूं कि कम से कम कांग्रेस में, स्वराज्य के विषय में हिंदी में बात करें। लेकिन हमारी शिक्षा में ऐसा दोष है, ऐसा आलस्य आया है कि जितना प्रयत्न इसके लिए करना चाहिए था, हमने नहीं किया।'


    सौ साल पहले जब बेलगांव की धरती पर 26 और 27 दिसंबर 1924 को विजयनगरम मंडप में महात्मा गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस महाधिवेशन हुआ तो उस दौरान पहली बार ये नगर देश की निगाह में आया था। उस दौरान केवल कांग्रेस ही नहीं देश भर के 27 दलों और संगठनों ने कांग्रेस के पंडाल में ही अपना सालाना जलसा किया था। ये आमंत्रण गांधीजी ने उस दौरान स्वराज के मुद्दे पर आपस में एकता के तहत दिया था।


    गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कर्नाटक को लंबे समय तक गांधीजी का प्रांत कहा जाता था। इस अधिवेशन के बारे में लोगों को अधिक जानकारी नही है। 26 दिसंबर 1924 को महान संगीतज्ञ विष्णु दिगम्बर पलुसकर ने वंदेमातरम के गायन से अधिवेशन का आरंभ किया था और बालिका गंगूबाई हंगल ने भी पहली बार यहीं राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाई थी।


    बेलगांव कांग्रेस में ही यह तय हुआ कि कौसिलों में स्वराज पार्टी के सदस्य कांग्रेस के सदस्य की हैसियत से उसके विचारों के अनुरूप काम करेंगे। उस दौरान कांग्रेस महासचिव के रूप में शुएब कुरैशी, बरजोरजी फ्रामजी भरूचा और जवाहर लाल नेहरू का चयन करने के साथ रेवा शंकर जावेरी तथा सेठ जमनालाल बजाज को कोषाध्यक्ष चुना गया।


    कांग्रेस की कार्यसमिति में देशबंधु चित्तरंजन दास, मोतीलाल नेहरू, सरोजिनी नायडु, एनसी केलकर, मौलाना मुहम्मद अली, अबुल कलाम आजाद, सरदार मंगल सिंह, एमएस अणे औऱ श्रीवरराजूलू नायडु जैसे नेता बेलगांव में सदस्य बने थे।
    उस दौरान बेलगांव में गांधीजी के साथ मंच पर इन नेताओं के साथ लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलाना हसरत मोहानी, एस सत्यमूर्ति, स्वामी श्रद्धानंद, मौलाना शौकत अली, डा. एनी बेसेंट, टी प्रकाशम और जवाहर लाल नेहरू समेत तमाम दिग्गज मौजूद थे।


    गांधीजी का भाषण हिंदी में हुआ। पर उनका जो आधिकारिक अध्यक्षीय भाषण कन्नड़, हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में छप कर बंटा उससे अलग उन्होंने कई बातें कही। उनका कहना ता कि स्वराज्य मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है, तिलकजी के इस श्लोक को पूरा करने के लिए ही मैं पैदा हुआ हूं।
    उन्होंने एकता का संदेश देते हुए पहली बार राजनीतिक एजेड़े में छुआछूत के खिलाफ मुहिम को भी रखा और साफ कहा कि अस्पृश्यता स्वराज की राह की सबसे बड़ी बाधाओं में है। जितना जल्दी हम यह काम करें हमारे हित में है।


    बेलगांव में ही हिंदुस्तानी सेवादल ने डॉ हाडीकर के नेतृत्व में 1156 स्वयंसेवकों ने ऐतिहासिक काम किया। रोज सुबह राष्ट्रीय ध्वज समारोहपूर्वक फहराने और शाम को उतारने का सिलसिला भी यहीं से आरंभ हुआ, जिसका जिम्मा सेवादल को मिला।
    बेलगांव कांग्रेस में 14 प्रस्ताव पारित हुए। इसका धन्यवाद ज्ञापन पंडित मोतीलाल नेहरू ने दिया था। गांधीजी की आखिरी टिप्पणी जवाहरलाल नेहरू पर उनकी भविष्यवाणी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि जवाहर लाल नेहरू की पूजा जगत करेगा और उन पर पुष्पवर्षा करेगा।


    इस अधिवेशन पर कुल 2.20 लाख रुपए का खर्च आया था जिसमें से खद्दर पर 30,547 तथा रेलवे के कामों पर हुआ 17,900 रुपए भी शामिल था। एक स्वदेशी प्रदर्शनी भी वहां लगी जिसमें मैसूर राज ने भी भागीदारी की। चिकित्सकों का अच्छा खासा दल भी यहां जुटा। पहली बार आयुर्वेदिक औषधियों को भी इसमें जगह मिली।
    बेलगांव सम्मेलन के बाद गांधीजी ने देश के कई प्रांतों का लगातार दौरा किया। केरल में वे 10 मार्च 1925 को वायकोम पहुंचे और छुआछूत के खिलाफ लड़ रहे सत्याग्रहियों को समर्थन दिया। साल भर में कांग्रेस की कार्यप्रणाली में काफी बदलाव आया और कांग्रेस की शक्ति बढ़ी।


    उस दौरान अंग्रेजी राज में लोगों में फौज का भय, कोने-कोने फैली पुलिस का भय, दमनकारी कानूनों का भय, महाजनों का भय, कैद का भय, जमींदार के गुमाश्ते का भय कायम था। लेकिन गांधीजी ने उनको किसी से न डरने की सलाह दी।
    हालांकि गांधीजी की 1915 में भारत आने के बाद से ही अलग हैसियत रही है। गांधीजी की शहादत के पहले नेहरूजी ने कहा था कि महात्मा गांधी कांग्रेस के स्थायी और सर्वोच्च अध्यक्ष हैं औऱ जब वे नहीं रहेंगे तो उनकी आत्मा कांग्रेस का नीति संचालन करेगी।


    28 दिसंबर को 140वें वर्ष में प्रवेश कर रही कांग्रेस के अब तक 85 महाधिवेशन हो चुके हैं। आजादी के ठीक पहले 54वां अधिवेशन 1946 में मेरठ में और आजादी के बाद 55वां अधिवेशन जयपुर में पट्टाभि सीतारमय्या की अध्यक्षता में हुआ, जबकि संविधान बनने के बाद 56वां अधिवेशन नासिक में हुआ था। लेकिन बेलगांव जैसी छाप कोई और छोड़ नहीं सका।
    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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